जापान ने एक बार फिर तकनीक की दुनिया में हलचल मचा दी है, इस बार बात है बेहद पतले और लचीले सोलर पैनलों की जो सिर्फ 1 मिलीमीटर मोटे हैं और शीशे या किसी भी सतह पर आसानी से चिपकाए जा सकते हैं। ये अल्ट्रा-थिन पेरोव्स्काइट सोलर पैनल न सिर्फ जापान की नेट-ज़ीरो के लक्ष्य को हासिल करने में मदद करेंगे, बल्कि चीन की सोलर इंडस्ट्री पर बनी पकड़ को भी चुनौती दे रहे हैं। वर्तमान में चीन वैश्विक सोलर सप्लाई चेन का 80% से अधिक नियंत्रण रखता है लेकिन जापान अब इस नई तकनीक से मुकाबले में उतर आया है।

पेरोव्स्काइट पैनल: पहाड़ी इलाकों के लिए वरदान
जापान का लगभग 70% हिस्सा पहाड़ी है, जिससे पारंपरिक सिलिकॉन सोलर पैनल लगाना मुश्किल होता है। लेकिन पेरोव्स्काइट पैनल इतने लचीले हैं कि इन्हें घुमावदार या ऊबड़-खाबड़ सतहों पर भी आसानी से लगाया जा सकता है। इन्हें कांच, फिल्म या पतली शीट पर पेंट या प्रिंट करके तैयार किया जाता है। इनका वजन सामान्य सोलर पैनल की तुलना में दसवां हिस्सा होता है और मोटाई केवल 1mm होती है। इसके अलावा इन पैनलों में उपयोग होने वाला आयोडीन जापान में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, जिससे देश को आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने में मदद मिलती है।
सरकार का बड़ा निवेश और स्पष्ट विज़न
जापान सरकार इस नई टेक्नोलॉजी को किसी भी कीमत पर सफल बनाना चाहती है। उद्योग मंत्री योजी म्युटो ने इसे “डिकार्बोनाइजेशन और औद्योगिक प्रतिस्पर्धा” दोनों के लिए सबसे मजबूत दांव बताया है। सरकार ने Sekisui Chemical नाम की कंपनी को 157 अरब येन (लगभग 1 अरब डॉलर) की सब्सिडी दी है ताकि 2027 तक इतने पैनल तैयार किए जा सकें जो 30,000 घरों की बिजली जरूरत को पूरा कर सकें। जापान का लक्ष्य है कि 2040 तक 20 गीगावाट क्षमता के पेरोव्स्काइट पैनल लगाए जाएं, जो लगभग 20 न्यूक्लियर रिएक्टरों के बराबर बिजली पैदा कर सकते हैं। इसका असर देश के ऊर्जा लक्ष्य पर भी साफ़ दिखेगा, जो 2023 के 9.8% के मुकाबले 2040 तक 29% बिजली सिर्फ सोलर से प्राप्त करने का है।
वास्तविक दुनिया में हो रही है शुरुआत
टोक्यो में 46-मंजिला एक गगनचुंबी इमारत में पहले ही इन पैनलों को लगाने की योजना शुरू हो चुकी है, जो 2028 तक पूरी हो जाएगी। वहीं फुकुओका शहर के एक बेसबॉल स्टेडियम की गुंबदनुमा छत को भी पेरोव्स्काइट पैनलों से ढकने की योजना है। पैनासोनिक जैसी बड़ी कंपनियां इन पैनलों को विंडोपैन में लगाने पर काम कर रही हैं। कंपनी के अधिकारी युकिहिरो कानेको के मुताबिक अगर हर खिड़की से बिजली बनने लगे, तो वह जगह खुद ही पावर स्टेशन बन सकती है और इससे नेशनल ग्रिड पर भी भार कम होगा। यह तकनीक भविष्य में शहरी क्षेत्रों के लिए बेहद क्रांतिकारी साबित हो सकती है।
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