अमेरिका ने एक बार फिर भारतीय सोलर मॉड्यूल इंडस्ट्री पर निशाना साधा है। इस बार नई anti-dumping जांच ने भारत के साथ-साथ इंडोनेशिया और लाओस से होने वाले सोलर मॉड्यूल इम्पोर्ट को घेरा है। इसका सीधा असर भारत के करीब ₹36,000 करोड़ (यानि $4.4 बिलियन) के सोलर एक्सपोर्ट पर पड़ सकता है। याचिका अमेरिकी कंपनियों जैसे First Solar, Qcells, Mission Solar Energy और Talon PV Solar Solutions द्वारा की गई है, जिसमें भारत से सोलर मॉड्यूल्स पर 213.96% तक डंपिंग मार्जिन लगाए जाने की बात की गई है। इससे Waaree जैसी कंपनियां, जिनकी 57% ऑर्डर बुक अमेरिका से जुड़ी है, सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकती हैं। Adani Enterprises और Vikram Solar भी इस खतरे की जद में आ रहे हैं।

अमेरिका की कार्रवाई से घट सकती हैं भारतीय कंपनियों की कमाई
पिछले कुछ वर्षों में जब चीन पर पाबंदियां लगीं तो भारत को उम्मीद थी कि अमेरिका जैसे बड़े बाजार में उसकी पकड़ मजबूत होगी। लेकिन अब जब अमेरिका ने इंडोनेशिया और लाओस जैसे देशों को भी जांच के घेरे में ले लिया है, भारत की स्थिति फिर से अस्थिर हो गई है। Kotak Institutional Equities की रिपोर्ट बताती है कि जनवरी से मई 2025 तक अमेरिका में सोलर मॉड्यूल इम्पोर्ट में 42% की गिरावट आई है। हालांकि भारत का निर्यात अब भी औसतन 300 मेगावाट प्रति माह बना हुआ है, लेकिन अगर यह जांच ड्यूटी में तब्दील हो गई तो इसमें बड़ी गिरावट संभव है। Premier Energies जैसी कंपनियां जो घरेलू बाजार पर निर्भर हैं, उन्हें इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन जिन कंपनियों की अमेरिकी बाजार में हिस्सेदारी ज्यादा है, उनके लिए यह खबर भारी नुकसान का संकेत है।
भारत के पास विकल्प हैं, लेकिन तैयारी अधूरी
भारत की सोलर मैन्युफैक्चरिंग क्षमता पिछले कुछ वर्षों में काफी तेजी से बढ़ी है। आज हमारे पास 74 GW मॉड्यूल और 25 GW सेल निर्माण की क्षमता है, जिसे सरकार 2030 तक 125 GW और 40 GW तक ले जाने का लक्ष्य बना रही है। Saatvik Green Energy के CEO प्रशांत माथुर का मानना है कि यह जांच एक बदलाव की ओर संकेत करती है जिसमें भारत को वैश्विक सोलर सप्लाई चेन में और मजबूत बनना है। लेकिन अभी भी भारत की सोलर सेल एक्सपोर्ट क्षमता बहुत सीमित है। US में जहां मॉड्यूल निर्माण 51 GW तक पहुंच चुका है, वहीं सेल निर्माण केवल 2 GW तक सीमित है। ऐसे में अमेरिका को सेल इम्पोर्ट करने की ज़रूरत बनी हुई है, लेकिन भारत अभी इस अवसर को पूरी तरह से नहीं भुना पाया है।
घरेलू मार्केट और वैकल्पिक निर्यात बाजार हो सकते हैं समाधान
BluPine Energy के सोलर हेड अशिष अग्रवाल के मुताबिक, अल्पकालिक रूप से भारतीय कंपनियों को झटका जरूर लगेगा, लेकिन भारत की मजबूत घरेलू नीति और बढ़ती मांग इसकी भरपाई कर सकती है। भारत के पास यूरोप, मिडिल ईस्ट और उत्तरी अफ्रीका जैसे वैकल्पिक बाजार मौजूद हैं, जहां निर्यात को बढ़ाया जा सकता है। इसके अलावा भारत में ही आने वाले वर्षों में बड़े पैमाने पर सोलर प्रोजेक्ट्स शुरू होने वाले हैं जिससे घरेलू खपत तेजी से बढ़ेगी। सरकार की PLI स्कीम और Make in India पहल से मैन्युफैक्चरिंग लागत में भी कमी आने की उम्मीद है। ऐसे में भारतीय कंपनियों को अब रणनीति बदलते हुए अमेरिकी बाजार पर निर्भरता घटाकर घरेलू और अन्य देशों में अवसर तलाशने होंगे, वरना Waaree से लेकर Adani तक सभी को भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है।
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