भारत अब कोयले की धूल और प्रदूषण भरी विरासत को पीछे छोड़कर हरित ऊर्जा की ओर तेज़ी से कदम बढ़ा रहा है। देशभर में मौजूद 63 बंद पड़ी कोयला खदानों को अब सौर ऊर्जा के केंद्र में बदला जाएगा। रिसर्च के अनुसार, ये खदानें कुल 500 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैली हैं और इनमें लगभग 27.11 गीगावॉट सौर ऊर्जा पैदा करने की क्षमता है। यह भारत की मौजूदा सौर क्षमता का करीब 37 प्रतिशत है, जो देश की बिजली की मांग को काफी हद तक पूरा कर सकती है। सोलर प्लांट लगाने से केवल ऊर्जा उत्पादन ही नहीं बढ़ेगा, बल्कि लाखों लोगों को रोजगार भी मिलेगा और पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

बंद खदानें बनेंगी हरित ऊर्जा का केंद्र
अब तक जिन जगहों पर कोयला निकालकर केवल धूल और जहरीली गैसें निकलती थीं, वे स्थान अब हरित ऊर्जा का उजाला फैलाएंगे। तेलंगाना, ओडिशा, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य इस बदलाव में अग्रणी होंगे, जहां बंद खदानों की भरमार है। इन जगहों पर पहले से ही पावर इंफ्रास्ट्रक्चर मौजूद है, जिससे वहां सौर ऊर्जा संयंत्र लगाना आसान होगा। इन सोलर पार्क्स से स्थानीय बिजली उत्पादन बढ़ेगा और ग्रिड पर दबाव भी कम होगा। साथ ही, जो जमीनें अब तक बेकार पड़ी थीं, वे अब एक बार फिर देश के विकास में भागीदारी निभाएंगी।
लाखों लोगों को मिलेगा रोजगार
इस पहल का सबसे बड़ा सामाजिक लाभ रोजगार सृजन के रूप में सामने आएगा। अनुमान है कि लगभग 2.6 लाख स्थायी नौकरियां सोलर पैनल मैन्युफैक्चरिंग, इंस्टॉलेशन, ऑपरेशन और मेंटेनेंस जैसे क्षेत्रों में पैदा होंगी। इसके अलावा लगभग 3.1 लाख अस्थायी नौकरियां भी निर्माण और लॉजिस्टिक्स में निकल सकती हैं। खास बात यह है कि यह रोजगार उन्हीं क्षेत्रों में उत्पन्न होंगे, जहां कभी कोयला उद्योग ने लाखों लोगों को रोज़गार दिया था। इससे स्थानीय लोगों को नए कौशल के साथ भविष्य की ऊर्जा में भागीदारी का मौका मिलेगा।
पर्यावरण को मिलेगी राहत
बंद खदानें पर्यावरण के लिए खतरा बन चुकी थीं। मीथेन जैसी खतरनाक गैसों का रिसाव और जलभराव के कारण होने वाले हादसे आम बात थे। लेकिन अब इन खदानों को सौर ऊर्जा में बदलने से न केवल कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी, बल्कि जलवायु परिवर्तन से लड़ने में भी मदद मिलेगी। सोलर प्रोजेक्ट्स की वजह से ग्रीनहाउस गैसों में कमी आएगी और यह भारत के नेट ज़ीरो कार्बन लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में बड़ा कदम होगा। साथ ही, ये परियोजनाएं भूमि के पुनर्विकास का भी बेहतरीन उदाहरण बनेंगी।
चुनौतियों से निपटना भी ज़रूरी
इस पहल में कई सकारात्मक पहलू हैं, लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं हैं। सबसे बड़ी समस्या जमीन के मालिकाना हक को लेकर आ सकती है, क्योंकि कई बंद खदानों की भूमि पर स्पष्ट रिकॉर्ड नहीं हैं। इसके अलावा, स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करना जरूरी है ताकि यह विकास समावेशी और टिकाऊ हो। कुछ परियोजनाओं में स्थानीय लोगों की जरूरतों की अनदेखी से विवाद भी हुए हैं, जिसे इस बार ध्यान में रखना होगा। अगर इन चुनौतियों को जिम्मेदारी से सुलझाया गया, तो यह योजना भारत की ऊर्जा क्रांति में मील का पत्थर बन सकती है।
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