प्रधानमंत्री सूर्यघर योजना के तहत शुरू की गई “मॉडल सोलर विलेज” स्कीम का मकसद था कि हर जिले से कम से कम एक गांव ऐसा हो जो अपनी अधिकतर बिजली जरूरतें सौर ऊर्जा से पूरी करे। योजना के अनुसार, इन गांवों में हर घर की छत पर रूफटॉप सोलर पैनल लगाए जाने थे जिससे पूरे गांव को स्ट्रीट लाइट, पेयजल पंप, ग्राम पंचायत ऑफिस और घरों की बिजली की ज़रूरतें पूरी की जा सकें। इसके साथ ही अगर कोई गांव जरूरत से ज्यादा बिजली उत्पादन करता है तो उसे राज्य सरकार की ओर से प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि राज्य के कई बड़े जिलों में अभी तक कोई भी गांव इस योजना का हिस्सा नहीं बना है।

अब तक इस योजना में महाराष्ट्र के सिर्फ छह जिलों – परभणी, अकोला, भंडारा, बुलढाणा, वर्धा और गोंदिया से कुल 63 गांवों की भागीदारी सामने आई है। इन गांवों में से 14 में योजना का काम पूरा हो चुका है जबकि बाकी जगहों पर अभी प्रयास जारी हैं। यह जिले आमतौर पर ग्रामीण और अपेक्षाकृत कम विकसित माने जाते हैं जबकि जिन जिलों में शहरीकरण और औद्योगिक विकास ज्यादा है वहां के गांव इस योजना में भाग नहीं ले रहे। इसमें नासिक, पुणे, अहमदनगर जैसे बड़े जिले शामिल हैं जो आर्थिक रूप से सक्षम भी हैं लेकिन फिर भी मॉडल सोलर विलेज नहीं बन पाए।
इस असफलता के पीछे कई कारण सामने आए हैं। एक तो यह कि कई गांवों में शुरुआती निवेश की जरूरत है जो कुछ ग्रामीणों को भारी लगता है। अधिकारी बताते हैं कि कई गांवों में दो गुट बन जाते हैं जो एक-दूसरे का विरोध करते हैं और योजना पर सहमति नहीं बनती। वहीं कुछ गांव इतने गरीब हैं कि उनके लिए यह निवेश संभव नहीं है। बड़े गांवों में दूसरी समस्या यह है कि वहां बहुमंजिला इमारतें होने से सोलर पैनल लगाना मुश्किल होता है। इसके अलावा कई जगहों पर ग्राम पंचायत या निजी संस्थाओं की व्यावसायिक गतिविधियां हैं जिनकी वजह से योजना में रुकावटें आती हैं।
हालांकि निराशा के बीच थोड़ी उम्मीद भी है। नासिक और अहिल्यानगर जिलों के कुछ गांवों ने इस योजना में रुचि दिखाई है। वहां के अधिकारियों की स्थानीय लोगों से बातचीत चल रही है और उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही कुछ गांव इस योजना से जुड़ जाएंगे। सरकार की ओर से भी प्रयास हो रहे हैं कि अधिक से अधिक गांवों तक योजना की जानकारी पहुंचे और उन्हें समझाया जाए कि यह एक दीर्घकालिक लाभ देने वाली योजना है, जिससे बिजली बिल में कटौती होगी और आत्मनिर्भरता भी बढ़ेगी।
यदि सही तरीके से जनजागरूकता फैलाई जाए और ग्रामीणों को इस योजना के वास्तविक लाभों के बारे में समझाया जाए, तो भविष्य में यह योजना बहुत बड़े पैमाने पर सफल हो सकती है। बिजली के मामले में आत्मनिर्भर बनना हर गांव का सपना है और सौर ऊर्जा के जरिए यह सपना साकार किया जा सकता है।
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