प्रधानमंत्री सूर्यघर: मुफ्त बिजली योजना के तहत एक नया और बेहद रोचक बदलाव किया गया है। अब इस योजना के “मॉडल सोलर विलेज” हिस्से को लेकर मंत्रालय ने गाइडलाइंस में अहम संशोधन किया है। इस संशोधन के बाद अब हर जिले में सिर्फ 6 महीने के भीतर उस गांव का चयन किया जाएगा, जो सबसे अधिक सोलर क्षमता स्थापित करेगा। यह पूरा चयन एक “चैलेंज मोड” में होगा, यानी गांवों को आपस में प्रतिस्पर्धा करनी होगी और जो सबसे आगे रहेगा, वही मॉडल सोलर गांव कहलाएगा। यह बदलाव राज्य एजेंसियों से मिले फीडबैक के बाद किया गया है ताकि स्कीम को ज्यादा प्रभावी और व्यावहारिक बनाया जा सके।

मॉडल सोलर विलेज की चयन प्रक्रिया में आई तेजी
इस योजना के अंतर्गत हर जिले से एक ऐसा गांव चुना जाएगा जो सौर ऊर्जा के उपयोग में सबसे बेहतर प्रदर्शन करेगा। चयन प्रक्रिया अब चैलेंज मोड में होगी, जिसमें गांवों को 6 महीने का समय दिया जाएगा। इस दौरान पंचायतें और स्वयं सहायता समूह गांवों में सौर ऊर्जा के प्रति जागरूकता फैलाएंगे, घर-घर जाकर लोगों को जोड़ेंगे और बैंक वेंडर्स से मिलवाकर सोलर इंस्टॉलेशन को बढ़ावा देंगे। जो गांव इस छह महीने की अवधि में सबसे ज्यादा सोलर कैपेसिटी स्थापित करेगा, उसे उस जिले का मॉडल सोलर गांव घोषित किया जाएगा। चुने गए गांव को केंद्र सरकार की ओर से ₹1 करोड़ तक की सहायता मिलेगी, जिससे वहां सोलर रूफटॉप, स्ट्रीट लाइट, सोलर पंप और अन्य सोलर आधारित उपकरण लगाए जाएंगे।
पात्रता मानदंड और नए बदलाव
पहले गाइडलाइन के अनुसार एक गांव को मॉडल बनने के लिए कम से कम 5,000 की जनसंख्या होनी जरूरी थी, लेकिन अब इसमें भी राहत दी गई है। विशेष राज्य जैसे उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर राज्य, अंडमान-निकोबार और लक्षद्वीप आदि के लिए न्यूनतम जनसंख्या सीमा घटाकर 2,000 कर दी गई है। इसके अलावा केवल ग्रामीण क्षेत्र के गांव ही इस योजना के लिए पात्र होंगे। जिन जिलों में 10 से कम ऐसे गांव हैं जो इस जनसंख्या मानक को पूरा करते हैं, वहां टॉप 10 सबसे अधिक जनसंख्या वाले गांवों को चयन में शामिल किया जा सकता है। जिला स्तर पर बनी कमेटी इस पूरी प्रक्रिया की निगरानी करेगी और जरूरत पड़ने पर मॉडल सोलर पंचायत भी चुनी जा सकती है।
पूरी तरह सोलर आधारित बनने की दिशा में अग्रसर गांव
योजना का उद्देश्य सिर्फ इतना नहीं कि गांव में कुछ सोलर लाइट या रूफटॉप सिस्टम लगा दिए जाएं। असली मकसद है कि ये गांव पूरी तरह से सोलर आधारित बनें। यानी गांव की कुल बिजली खपत या तो सौर ऊर्जा से पूरी हो या फिर गांव सालाना नेट-जीरो स्थिति तक पहुंच जाए। इसके लिए चयन के बाद एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) तैयार की जाएगी, जिसमें सभी जरूरी तकनीकी समाधान शामिल होंगे। इसमें कृषि के लिए सोलर पंप, सार्वजनिक स्थानों पर सोलर लाइट, आजीविका के लिए सोलर उपकरण जैसे ग्राइंडर, थ्रेशर आदि भी जोड़े जाएंगे। इन सामुदायिक परियोजनाओं को 100% सरकारी सहायता मिल सकती है, लेकिन किसी सहकारी संस्था को कम से कम 10% योगदान देना होगा।
फंडिंग की प्रक्रिया और जिम्मेदारी
केंद्र की तरफ से मिलने वाली ₹1 करोड़ की सहायता राशि तीन चरणों में दी जाएगी—पहला 40% जब प्रोजेक्ट का कार्यादेश जारी होगा, अगला 40% जब काम पूरा हो जाएगा और उसकी पुष्टि हो जाएगी और अंतिम 20% छह महीने की सफल संचालन अवधि के बाद दिया जाएगा। हर चरण की रकम को छह महीने के भीतर उपयोग करना अनिवार्य होगा। यदि पैसे का उपयोग नहीं होता या उससे ब्याज प्राप्त होता है, तो उसे सरकार को वापस करना होगा।
इन परियोजनाओं का स्वामित्व गांव या स्थानीय समूहों के पास होगा और संचालन की जिम्मेदारी भी उन्हीं पर होगी। अतिरिक्त फंडिंग के लिए सीएसआर और अन्य स्रोतों से भी मदद ली जा सकती है। इस तरह यह योजना न केवल ग्रामीण भारत को स्वच्छ ऊर्जा से जोड़ रही है बल्कि उन्हें ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर भी बना रही है। आने वाले छह महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि किस जिले का कौन सा गांव सबसे पावरफुल सोलर गांव बनता है।
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